प्रकृति की जुल्फों से , बिखरती हुई खुशबु ।
चाँदनी रात में , इतराती परियों की घुँगरू ॥
पत्थरों में टकराकर निकलती झंकार ।
इन सबने , कितना सुहाना बनाया है संसार ॥
फूलो की चढ़ती जवानी ।
सागरों में छलकता पानी ॥
कोयल की कू - कू बोली,
होली के , रंगों की रंगीली धार ।
इन सबने , कितना सुहाना बनाया है संसार ॥
कलियों की ओठों से , बिखरती मुस्कान ।
प्रभात में बिखरती , मधुर उषा की किरण ॥
हवा की तीनो से , निकती फूलो की सहनाई ,
मधुर - मधुर चाँद की परछाई ।
इन सब के साथ संसार , लेता है अंगड़ाई ॥
हवाओं में लहराती प्रकृती की आँचल ।
चम - चम चमकता हुआ हिमालय ॥
जंगलो में गुंजती हिरनों की शोर ,
झुम-झुम नाचता हुआ मोर ।
इन सबने संसार को बनाया है कितना प्यारा ,
यह देखर , झुम - झुम के नाच रहा है बंजारा ॥