Tuesday 30 October 2018

कली की खुशबू

कली की खुशबू में , ऐसा नशा होता है।
उसी नशा में , बेखबर से भवरे सोता है।
कली की खुशबू में , ऐसा मिठास होता है।
उसी मिठास में , हर कोई खो जाता है।


जो कोई उसकी खुशबू  की मिठास पता है
मुग्थ होकर उसकी ओर चला जाता है
जहाँ-जहाँ तक काली की खुशबू महकती है
वह तक उसकी चर्चा चलती है॥


वाह रे वाह ! गजब है कली
की खुशबू ।
हे गोरी जरा बजा दो न घुँघरू ॥

वाह रे वाह ! कितनी मीठी  कली की खुशबू ।
मचल उठता है मन , मै कैसे रोकू॥

चलो ले एकबार उसका मज़ा।
याद रहे हमें, वह सदा-सदा॥

जो थी वह एक परी थी

फूलो सी जवानी थी,
 रूपों की रानी थी,
 हिरन सी चाल थी,
 पानी की हाल थी,
मदहोशी खूब थी।
जो थी, वह एक परी थी॥